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Youth Politics: राजनीति को नई राह दिखा रहे युवा, पर आसान नहीं राह



  • सुचेता कृपलानी से लेकर राघव चड्ढ़ा, चिराग, कन्‍हैया, तेजस्‍वी, रितु एवं श्रेयसी तक लंबी है लिस्‍ट
  • बदलाव की सोच लेकर आई शिक्षित युवा नेताओं की ये जमात; पुष्‍पम, प्रशांत व लांडे भी शामिल  

नई दिल्‍ली, पार्टी पॉलिटिक्‍स डेस्‍क। भारत अपनी जनसंख्या का लगभग 65 प्रतिशत 35 वर्ष से कम आयु वर्ग के लोगों के साथ दुनिया के सबसे युवा देशों में से एक है। यह युवा शक्ति राजनीति (Politics) में परिवर्तन की वाहक बन सकती है। हाल के वर्षों में, कई युवा नेताओं ने अपनी उपस्थिति दर्ज कराई है। उन्होंने भारतीय राजनीति (Indian Politics) में नीति निर्माण, जनसंपर्क और चुनावी रणनीति में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। दलीय प्रतिबद्धताएं राजनीति की तमाम नकारात्मकता के बावजूद इनमें एक यह बात समान है कि ये युवा नेता (Youth Leaders) भारतीय राजनीति में नई ऊर्जा, तकनीकी समझ और नए विचार ला रहे हैं। 

प्रारंभिक लोकसभाओं में कम भागीदारी

देश की राजनीति में युवा भागीदारी की बात करें तो प्रारंभिक लोकसभाओं में स्वतंत्रता संग्राम (Indian Freedom Struggle) के अनुभवी नेताओं का वर्चस्व होने के कारण युवा भागीदारी कम थी। हालांकि, तब भी पहली लोकसभा में सुचेता कृपलानी (43 वर्ष) और राम मनोहर लोहिया (41 वर्ष) जैसे युवा नेता थे। वर्ष 1984 में राजीव गांधी 40 वर्ष की उम्र में प्रधानमंत्री बने, जिससे युवा नेतृत्व को प्रोत्साहन मिला। वर्ष 2004 के चुनाव में राहुल गांधी (34 वर्ष) युवा नेता के रूप में उभरे। वर्ष 2024 के लोकसभा चुनाव में लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) की शांभवी चौधरी (25 वर्ष), कांग्रेस की संजना जाटव (25 वर्ष) तथा समाजवादी पार्टी के पुष्पेंद्र सरोज (25 वर्ष) व प्रिया सरोज (25 वर्ष) संसद के सबसे युवा चेहरे के रूप में उभर कर सामने आए। ADR और The Indian Express के अनुसार, वर्ष 2024 के चुनाव से बनी 18वीं लोकसभा में 104 सांसद 45 वर्ष से कम आयु के हैं। यह संख्‍या कुल सांसदों का 19.15 प्रतिशत है।

लगातार बढ़ी है सांसदों की औसत आयु

हालांकि, तस्वीर का दूसरा पहलू सांसदों की औसत आयु है। पहली लोकसभा में औसत आयु 46.5 वर्ष थी, जो अब बढ़कर 56 वर्ष हो गई है। इसका सीधा अर्थ है कि संसद में युवा सांसदों की संख्या तुलनात्मक रूप से कम हुई है। हाल के कुछ चुनावों को देखें तो 15वीं लोकसभा (2009) में 143, 16वीं में 130 तथा 17वीं (2019) में 104 सांसद 45 वर्ष से कम उम्र के थे। वर्तमान 18वीं लोकसभा में भी 45 वर्ष तक के 104 सांसद पिछली लोकसभा (2019) के बराबर हैं। हालांकि, उम्मीद भरा सकारात्मक पक्ष यह है कि वर्तमान लोकसभा में 25 सांसद 35 वर्ष से कम आयु के हैं, जो युवा नेतृत्व की बढ़ती स्वीकार्यता को दर्शाता है। नीतिगत सुधार और प्रशिक्षण से यह आंकड़ा और बढ़ सकता है।

पहले भी डालते रहे हैं महत्‍वपूर्ण प्रभाव

युवा नेताओं का योगदान केवल वर्तमान तक सीमित नहीं है। ऐतिहासिक रूप से भी उन्‍होंने महत्वपूर्ण प्रभाव डाला है। राजीव गांधी ने 1984 में प्रधानमंत्री के रूप में डिजिटल क्रांति और पंचायती राज को बढ़ावा दिया। उनकी नीतियों ने भारत को तकनीकी युग में प्रवेश कराया। उनके पहले, 1951 में पहली लोकसभा में सांसद रहीं सुचेता कृपलानी (43 वर्ष) ने महिला सशक्तीकरण और सामाजिक सुधारों पर जोर दिया था। बाद में वे उत्तर प्रदेश की पहली महिला मुख्यमंत्री बनीं। वर्तमान काल में युवा नेता राजनीति में बदलाव की बयार लेकर आए हैं। देश उनमें भविष्य का नेतृत्व और प्रगति की संभावनाएं देख रहा है। युवा नेताओं ने नीति निर्माण, सामाजिक समावेशन, डिजिटल संवाद और जन-केंद्रित मुद्दों को उठाकर महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने शिक्षा, रोजगार और डिजिटल अर्थव्यवस्था जैसे आधुनिक मुद्दों पर नीतियां प्रस्तावित की हैं, जो युवा मतदाताओं को आकर्षित करती हैं। युवा नेता सोशल मीडिया का उपयोग कर जनता से सीधे जुड़ रहे हैं, जिससे राजनीतिक संवाद अधिक समावेशी और गतिशील हुआ है।

आज राजनीति में दे रहे हैं बड़े योगदान  

राजनीति के वर्तमान युवा सितारों में बिहार के कन्हैया कुमार (38 वर्ष) में कांग्रेस भविष्य की संभावनाएं तलाश रही है। अखिलेश यादव के युवा नेतृत्व में समाजवादी पार्टी उत्तर प्रदेश में चुनाव लड़कर सफलता हासिल कर चुकी है। वे प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री हैं। बिहार में राष्ट्रीय जनता दल के नेता और पूर्व उपमुख्यमंत्री तेजस्वी यादव (35 वर्ष) ने वर्ष 2020 के बिहार विधानसभा चुनाव में बेरोजगारी और शिक्षा पर केंद्रित अभियान चलाया। उनके “10 लाख नौकरी” वादे ने युवा मतदाताओं को आकर्षित किया, जिससे आरजेडी 75 सीटें जीतकर सबसे बड़ी पार्टी बनी। 

भाजपा के बेंगलुरु दक्षिण से सांसद तेजस्वी सूर्या (34 वर्ष) ने एक्स (ट्विटर) और इंस्टाग्राम पर सक्रियता के साथ स्टार्टअप्स और डिजिटल शासन को बढ़ावा दिया। 2024 में उनके सोशल मीडिया अभियानों ने बेंगलुरु में युवा मतदाताओं को प्रेरित किया। पंजाब से आम आदमी पार्टी के राज्यसभा सदस्य राघव चड्ढा (36 वर्ष) ने शिक्षा और स्वास्थ्य नीतियों को सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचारित किया। 2022 में पंजाब में AAP की जीत में उनकी डिजिटल रणनीति महत्वपूर्ण थी। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) से समस्तीपुर (बिहार) की सांसद शांभवी चौधरी (25 वर्ष) ने 2024 में ग्रामीण विकास और डिजिटल शिक्षा पर जोर दिया। उन्होंने बिहार में स्कूलों में डिजिटल कक्षाओं के लिए प्रस्ताव रखा।

श्रेयसी सिंह (34 वर्ष) बिहार के जमुई से बीजेपी की विधायक हैं। एक अंतरराष्ट्रीय निशानेबाज के रूप में उपलब्धियों के कारण वे पहले से चर्चा में थीं। विधायक बनने के बाद उन्‍होंने खेलों के विकास के लिए प्रयास किए हैं। उत्तर प्रदेश में मैनपुरी से समाजवादी पार्टी की सांसद डिंपल यादव (47 वर्ष) पूर्व मुख्‍यमंत्री व पार्टी अध्‍यक्ष अखिलेश यादव की पत्‍नी व पार्टी का बड़ा चेहरा हैं। यूपी की युवा महिला राजनेताओं में बीजेपी की पूर्व मंत्री स्वाति सिंह (45 वर्ष) ने सामाजिक मुद्दों पर अपनी सक्रियता से ध्यान खींचा है तो झारखंड से बीजेपी सांसद गीता कोड़ा (41 वर्ष) अपनी सामाजिक और आदिवासी मुद्दों पर सक्रियता के लिए चर्चा में रही हैं। आम आदमी पार्टी की नेता व दिल्‍ली की पूर्व मुख्‍यमंत्री आतिशी (43 वर्ष) भारत की सबसे युवा महिला मुख्यमंत्रियों में शामिल रहीं। 

उठा रहे दलितों-अल्पसंख्यकों के भी मुद्दे 

युवा नेता, विशेष रूप से युवा महिलाएं, दलित और अल्पसंख्यक समुदायों के मुद्दों को उठा रहे हैं। भरतपुर (राजस्थान) से कांग्रेस सांसद संजना जाटव (25 वर्ष) ने दलित समुदाय के लिए शिक्षा और रोजगार अवसरों पर जोर दिया। उन्होंने राजस्थान में मुफ्त शिक्षा योजनाओं के लिए अभियान चलाया। उत्तर प्रदेश के मछलीशहर से सपा सांसद प्रिया सरोज (25 वर्ष) ने महिला सशक्तीकरण और सामाजिक न्याय पर ध्यान दिया। 2024 में उनके अभियान का उत्तर प्रदेश में पार्टी की जीत में योगदान रहा। युवा नेता स्थानीय और ग्रामीण मुद्दों को भी राष्ट्रीय मंच पर ला रहे हैं। लोक जनशक्ति पार्टी (राम विलास) के हाजीपुर (बिहार) से सांसद चिराग पासवान (42 वर्ष) ने केंद्रीय खाद्य प्रसंस्करण उद्योग मंत्री के रूप में बिहार में ग्रामीण उद्यमिता और खाद्य प्रसंस्करण इकाइयों को बढ़ावा दिया है। समाजवादी पार्टी के कौशांबी (उत्तर प्रदेश) से सांसद पुष्पेंद्र सरोज (25 वर्ष) ने ग्रामीण रोजगार और बुनियादी ढांचे पर जोर दिया तथा 2024 में कौशांबी में सड़क और बिजली परियोजनाओं के लिए प्रस्ताव पेश किया।

युवाओं की ये जमात भी कर रही आकर्षित 

राजनीति में बदलाव की अपनी सोच को लेकर आने वाले शिक्षित युवा नेताओं की ऐसी नई जमात भी है जो अपने दम पर अकेले चलना चाहती है। वे लोगों का ध्‍यान खींच रहे हैं।  

लंदन स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स से पढ़ी एवं 'द प्लुरल्स' पार्टी की अध्यक्ष पुष्‍पम प्रिया चौधरी (31 वर्ष) ने पिछले विधानसभा चुनाव में खुद को मुख्‍यमंत्री प्रत्‍याशी घोषित कर सभी को चौंका दिया था। वे जाति और धर्म आधारित राजनीति का विरोध करती हैं और इसे बिहार के विकास में बाधा मानती हैं। उनकी राजनीतिक विचारधारा प्रगतिशीलता, उदारवाद, विकेंद्रीकरण और समावेशिता पर आधारित है। वे बिहार को भारत का सबसे विकसित राज्य बनाना चाहती हैं। इसे वे "नया बिहार" के रूप में परिभाषित करती हैं।

पुष्‍पम के बाद सक्रिय राजनीति में कूदे प्रशांत किशोर (48 वर्ष) ने अमेरिका के जॉन्स हॉपकिन्स ब्लूमबर्ग स्कूल ऑफ पब्लिक हेल्थ से सार्वजनिक स्वास्थ्य (Public Health) की डिग्री प्राप्त की है। चुनावी रणनीतिकार रहे प्रशांत मुख्य रूप से भारत में शासन प्रणाली और लोकतांत्रिक प्रक्रिया को अधिक प्रभावशाली, उत्तरदायी और जनहितकारी बनाना चाहते हैं। उनकी पहल ‘जन सुराज’ (Jan Suraaj) का उद्देश्य है जनता को राजनीति में भागीदार बनाना और ‘सुशासन’ को राजनीति की मुख्यधारा में लाना। वे चाहते हैं कि आम लोग केवल मतदाता न रहें, बल्कि नीति निर्माण की प्रक्रिया में भी सहभागी बनें।

आईपीएस अधिकारी रहे शिवदीप वामनराव लांडे (48 वर्ष) ने भी 19 सितंबर 2024 को स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति लेकर सक्रिय राजनीति में कदम रख दिया है। उन्‍होंने इसी वर्ष आठ अप्रैल को 'हिन्द सेना' नामक राजनीतिक दल की स्थापना कर बिहार विधानसभा की सभी 243 सीटों पर चुनाव लड़ने की घोषणा की है। उनके दल के सिद्धांत मानवता, न्याय और सेवा को प्राथमिकता देना, जातिवाद और धर्म आधारित राजनीति से ऊपर उठकर पारदर्शी और ईमानदार शासन प्रदान करना है। उनका मानना है कि बिहार को अब पुराने नारों और खोखली राजनीति से बाहर निकलकर एक ऐसे नए नेतृत्व की जरूरत है, जो मानवता, न्याय और सेवा को प्राथमिकता दे। 

वंशवाद और उम्र सीमा की बड़ी बाधाएं 

2019 की लोकसभा में सचिन पायलट और ज्योतिरादित्य सिंधिया जैसे नेता, जो क्रमशः राजेश पायलट और माधवराव सिंधिया के बेटे हैं, सहित 30 प्रतिशत से अधिक युवा सांसद राजनीतिक परिवारों से थे। यह वंशवादी राजनीति गैर-राजनीतिक पृष्ठभूमि के युवाओं के लिए अवसरों को सीमित करती है। वर्ष 2023 के एक सर्वेक्षण में 70 प्रतिशत युवाओं ने कहा था कि वे राजनीति को भ्रष्ट और अवसरवादी मानते हैं। दिल्ली में 2020 के छात्र आंदोलनों के दौरान कई युवा कार्यकर्ताओं ने राजनीति में प्रवेश करने के बजाय स्‍वयंसेवी संगठनों या सामाजिक कार्य को चुना, क्योंकि वे पारंपरिक राजनीति पर भरोसा नहीं करते। राजनीति में युवाओं के प्रवेश के लिए उम्र भी एक बड़ी बाधा है। भारत में चुनाव लड़ने की न्यूनतम आयु 25 वर्ष है, जबकि कई देशों में यह 21 या 18 है। युवाओं के एक बड़े वर्ग का मानना है कि आयु सीमा को घटाकर 18 वर्ष किया जाना चाहिए। उनका तर्क है कि जब मतदान की उम्र 18 वर्ष है तो चुनाव लड़ने की उम्र 25 वर्ष क्यों? वर्ष 2024 में 22 वर्षीय रिया शर्मा ने दिल्ली में नगर निगम चुनाव में भाग लेने की इच्छा जताई, लेकिन आयु सीमा के कारण वे अयोग्य थीं।

राजनीतिक दल व सरकारें करें सहयोग

प्रश्न यह है कि युवा नेताओं का भविष्य क्या है? भविष्य की संभावनाएं आशाजनक हैं, लेकिन इसमें राजनीतिक दलों एवं केंद्र व राज्‍य सरकारों के सहयोग आवश्यक हैं। भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) और कांग्रेस ने अपनी युवा इकाइयों (ABVP और NSUI) में 30 वर्ष से कम आयु के नेताओं को प्राथमिकता देना शुरू किया है। यदि राजनीतिक दल टिकट वितरण में 25 प्रतिशत कोटा युवाओं के लिए निर्धारित करें, तो गैर-वंशवादी नेतृत्व उभर सकता है। उदाहरण के लिए, आम आदमी पार्टी ने दिल्ली में 2020 में कई युवा उम्मीदवारों को मौका दिया, जिनकी जीत भी हुई।

राष्ट्रीय युवा संसद जैसे कार्यक्रमों में हर वर्ष 50,000 से अधिक युवा भाग लेते हैं। स्कूलों में राजनीतिक शिक्षा और नेतृत्व प्रशिक्षण शुरू करने से युवाओं का रुझान राजनीति में बढ़ सकता है। उदाहरण के लिए, केरल में 2023 से स्कूलों में शुरू किए गए “लोकतंत्र शिक्षा” पाठ्यक्रम ने छात्रों में जागरूकता बढ़ाई। वर्ष 2019 में, केवल 14 प्रतिशत सांसद महिलाएं थीं, और उनमें से अधिकांश 40 वर्ष से अधिक आयु की थीं। युवा महिला नेताओं को बढ़ावा देने के लिए दलों द्वारा महिला और युवा आरक्षण को मिलाकर प्राथमिकता दी जा सकती है। वर्ष 2023 में भारत सरकार द्वारा पारित नारी शक्ति वंदन अधिनियम (महिला आरक्षण विधेयक) के तहत 33 प्रतिशत सीटें महिलाओं के लिए आरक्षित करने का प्रावधान है। यदि इसमें आयु आधारित उप-कोटा जोड़ दिया जाए, तो युवा महिला नेतृत्व को गति मिल सकती है।

तकनीकी क्षेत्र में दक्ष युवाओं के लिए भी राजनीति में योगदान के नए रास्ते खोले जा सकते हैं। उदाहरण के लिए, राजस्थान में “राज नीति लैब” (2022) जैसी पहल के तहत युवाओं को नीतिगत शोध और नीति विश्लेषण में अवसर दिए गए। यह कार्यक्रम युवाओं को विधायक कार्यालयों से जोड़ता है, जिससे उन्हें जमीनी स्तर पर राजनीतिक अनुभव प्राप्त होता है। यदि यह मॉडल राष्ट्रीय स्तर पर अपनाया जाए, तो युवा नीति विशेषज्ञ और तकनीकी रूप से दक्ष नेता उभर सकते हैं।

इसके अतिरिक्त, राजनीतिक प्रशिक्षण संस्थान जैसे नेहरू युवा केंद्र, भारतीय लोक प्रशासन संस्थान और राज्य युवा बोर्ड द्वारा चलाए जा रहे प्रशिक्षण कार्यक्रमों में सुधार लाकर उन्हें अधिक प्रायोगिक और समकालीन बनाया जा सकता है। युवाओं को बजट निर्माण, नीतिगत विश्लेषण, और स्थानीय शासन की प्रक्रियाओं से परिचित कराया जाना चाहिए। इससे वे केवल प्रदर्शनकारी न होकर नीति-निर्माण में भी सक्रिय भूमिका निभा सकेंगे।

अवसर मिले तो बनें परिवर्तन के अग्रदूत

कह सकते हैं कि भारतीय लोकतंत्र के सशक्तीकरण के लिए युवाओं की भागीदारी अत्यंत आवश्यक है। आज भारत एक युवा देश है, लेकिन उसकी संसद अपेक्षाकृत वृद्ध। यह अंतर केवल संख्या से नहीं, सोच से भी दूर किया जाना चाहिए। वंशवाद, संसाधनों की कमी और राजनीतिक अविश्वास जैसी चुनौतियां बाधा नहीं बनें तो युवा नेता तकनीक, पारदर्शिता और स्थानीय मुद्दों को राष्ट्रीय मंच पर लाने की क्षमता रखते हैं। कई युवा इन बाधाओं को पार कर सफल हो रहे हैं। यदि राजनीतिक दलों द्वारा टिकट वितरण में युवाओं को वरीयता दी जाए, आयु सीमा को पुनर्विचारित किया जाए, और नेतृत्व प्रशिक्षण को संस्थागत रूप दिया जाए, तो भारत में युवा नेतृत्व की नई लहर आ सकती है। इससे न केवल राजनीति में नई ऊर्जा आएगी, बल्कि लोकतंत्र और अधिक उत्तरदायी और समावेशी बन सकेगा। अतः यह कहना अतिशयोक्ति नहीं होगी कि यदि आज के युवाओं को अवसर मिले, तो वे कल के प्रधानमंत्री, नीति निर्माता और परिवर्तन के अग्रदूत बन सकते हैं।  

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